तुम और जपला
कल्पना की है अगर हमारी जीवनसंगिनी बचपन से ही हमारे शहर में होतीं तो कैसा होता ?
1 min readJul 21, 2020
जब भी मैं तुम्हारी ओर देखता हूँ
तुम्हे पाता हूँ जपला की गलियों में
उठा था सुबह, गुलाबी सी ठण्ड थी
पीपल के पेड़ के नीचे, सुखी पत्तियों के अलाव में ठण्ड को जलते हुए देखता हूँ
बाजार के मंदिर में
भगवान शिव के ऊपर पड़ते हुए दूध में पानी मिला होता था
९ साल का मैं , ७ की तुम — नजरों में मिलावट सीखी नहीं थी
धूल में खेलते हुए फूल को देखता हूँ
भविष्य को वर्तमान में देखता हूँ
आज भी याद है जब गया था सोन नदी में नहाने ठन्डे पानी ने छुआ ऐसे जैसे तुम्हारे होने का अहसास करा रही हो
खरबूजा तुम्हारे छोटे छोटे पाँवो के नजदीक से गुजरने की दास्तां कह रहा था
मुझे महसूस होता है तुम मुझमें ही हो … मुझसे ही बनी हो
मैं तुममे दुनिया और दुनिया में तुम्हे देखता हूँ