तुम्हारा साथ

Amit Prakash Gupta
2 min readOct 31, 2022

एक बार की बात है मैं तुम्हारी फोटो को देख रहा था
एक और बार की बात है जब मैं तुम्हे देख रहा था
पहली बार में बातें ख़तम ही न होती थी
दूसरी बार जैसे घिघ्घी बंधी हुई हो

पहली बार आज से शुरुवात कर बात बीते हुए कल तक गयी थी
बातों का कारवां चलता गया
साठ साल की उम्र में जब तुम्हारे दांत न होंगे
तरबूजे के बीज निकाल कर दूंगा मैं

दूसरी बार बैठा था तुम्हारे सामने पत्थर की मूरत की तरह
साढ़े सताइस मिनट लगे थे तुम्हे छु पाने में
जन्माष्ठमी की आधी रात को बाल कृष्ण के प्राण फूंक दिए हो ऐसा था वो स्पर्श
प्यार से भक्ति तक का मार्ग तुम्हारे साथ ही तो चला हूँ मैं

स्वर्ग की अनुभूति से बाहर तब निकला जब तुम्हारा हाथ पकड़ा था मैंने
सड़क जो क्रॉस करानी थी तुम्हे
इस दुनिया की सड़क
यहाँ पर अनगिनत वाहने
बहुत सारी अलग अलग दुनिया हमारी दुनिया से टकरा रही होती है

हर मिलन, हर तपन , हर बिताये हुए पल , हर एक बात — इतना अमीर बना गए हैं मुझे
कितना भी लुटाऊँ , कितना भी बिताऊं — ख़तम न होगा — तुम जानती तो हो

आज सुबह जब तुमने कहा की कमतर महसूस कर रही हूँ मैं
प्रतिक्रियात्मक सोचा तो यही की मेरे मन मंदिर में सर्वोत्तम स्थान तुम्हारा ही तो है
टूट टूट के प्यार किया है तुम्हे
तभी दूसरा वाक्य सुना
अमित मुझे तुम्हारे पलकों पे नहीं तुम्हारे साथ बैठना है
तब अहसास हुआ ‘तुम्हारे लिए करने से’ तुम्हें खोता जा रहा हूँ मैं

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