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प्यार के रूप

तुम सोई थी कुडमुडा के

चादर ओढ़ाई और हल्के से छुआ था
यह है प्यार यथार्थ का।

तुम्हारे बाल का एक कतरा
तुम्हारी लिपस्टिक पोछी हुई पेपर नैपकिन
मिले मुझे संभाल के रखे हुए
वो है प्यार स्मृति का।

टिमटिमाती सी रात थी
तुम जगमगा रही थी
में तुम्हारी रोशनी में नहा रहा था
मैं, तुम और चाय की एक कुल्लहड़ तीनो बैठे थे सुबह के पांच बजे तक
बातें करते हुए
वो था प्यार कल्पनाओं का ।

और तुम जानना चाहती को की
मैं तुमसे प्यार कितना करता हूं
बताने दो मुझे...
इस दुनिया में जितने रंग हैं
उतना प्यार किया है टूट टूट के।

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